Monday, June 11, 2012

सिसकते होटों की वो हँसी


सिसकते होटों की वो हँसी 
 छुपाये बैठी है जाने कितने राज़ 
अनगिनत सूने पलों को 
बनाकर अपना राजदार,
वो हँसी। 

सूखी आँखों में छिपी 
आंसुओं की बाढ़ को थाम कर, रोक कर 
खिलखिला रही है 
इन होठों पर,
वो हँसी। 

सूनी राहों पर टूटती आस को ,
हर अँधेरे को 
उजाले में बदलती, 
वो हँसी।
  
हाथों से हर पल सरकती 
इस ज़िन्दगी को,
पक्की डोर से बांधे 
सिसकते होटों की वो हँसी।

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