Monday, June 11, 2012

वोह शाम

सूरज ढल रहा है पर चाँद अभी निकला नहीं
आसमान लाली की गर्माहट ओढे है
सितारे तलाश रहे हैं रात की शीतलता

विचित्र सा समां है
जैसे कोई नवेली दुल्हन
कुछ सिमटी कुछ घबराई
इंतज़ार में हो एक नई ज़िन्दगी की
चारों और दोराहों का मिलन हो रहा है
शाम का आँचल ओढ़े हवा झूम रही है
पंछी लौट रहे हैं घौंसलो की और
मझधार पर आकर जैसे सब थम गया हो
इक नयी सुबह इक नयी राह तलाशता
बढ़ चला है हर जीव
रात की गोद में, सर झुकाकर 

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