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My thoughts in poetry and prose
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Monday, June 11, 2012
और क्या कहें हम
और क्या कहें हम, हर सांस तुम्हारी है
हर लम्हे में अब आर्ज़ू तुम्हारी है!
बस इक बार हमें संग ले चलो
हमारी ये सारि ज़िन्दगी तुम्हारी है!
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