Tuesday, June 12, 2012

कली

खिलने के इंतज़ार में बैठी एक डाली पर
हरी पत्तियों के बीच 
नन्ही कली 

तेज़ सूरज की किरणों को तरसती 
उस डाली पर अकेली 
एक कली 

दिन के उजाले के साथ आयी 
सूरज की वो मद्धम किरण 
छू गई हरी पत्ती को 
तो राह बन गई जिसको तरसती थी 
कली 

हवा का भीना सा एहसास हुआ 
सोंधी सी खुशबू महकाती 
अपनी लाली बिखेरती 
अंगड़ाई ले खिलने लगी 
कली 

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