सिसकते होटों की वो हँसी
छुपाये बैठी है जाने कितने राज़
अनगिनत सूने पलों को
बनाकर अपना राजदार,
वो हँसी।
सूखी आँखों में छिपी
आंसुओं की बाढ़ को थाम कर, रोक कर
खिलखिला रही है
इन होठों पर,
वो हँसी।
सूनी राहों पर टूटती आस को ,
हर अँधेरे को
उजाले में बदलती,
वो हँसी।
हाथों से हर पल सरकती
इस ज़िन्दगी को,
पक्की डोर से बांधे
सिसकते होटों की वो हँसी।
really nice lines ... loved it .
ReplyDeletethanks!
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