बिखरी हुई ज़िन्दगी को समेटूं कैसे
अपने ही हाथों से छूटे अपनों को ढूँढूं कैसे
प्यार की खोज में जिस ज़िन्दगी को अपनाया था
नफरत भरे लम्हों में उसी को भिगो दूँ कैसे
जिस राह पर विश्वास की चाह थी
धोके भरे क़दमों को उस्सी राह पर चलते हुए सहूँ कैसे
दिल को भरोसे से किया था जिसके हवाले
उसी के आक्रोश से अपने दिल को टूटने से बचाऊं कैसे
बिखरी हुई इस ज़िन्दगी को अब जियूं कैसे !
अपने ही हाथों से छूटे अपनों को ढूँढूं कैसे
प्यार की खोज में जिस ज़िन्दगी को अपनाया था
नफरत भरे लम्हों में उसी को भिगो दूँ कैसे
जिस राह पर विश्वास की चाह थी
धोके भरे क़दमों को उस्सी राह पर चलते हुए सहूँ कैसे
दिल को भरोसे से किया था जिसके हवाले
उसी के आक्रोश से अपने दिल को टूटने से बचाऊं कैसे
बिखरी हुई इस ज़िन्दगी को अब जियूं कैसे !
image src: freehdphotogallery.blogspot.com |
Good one.. :)
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