Friday, July 6, 2012

मेरे क्यूब का मौसम

कड़कती धूप हो 
या बारिश की ठंडी बूँदें
मेरे क्यूब का मौसम एक सा ही रहता है
खिड़की पर पड़े ब्लाइंड को ज़रा रोल कर लेती हूँ
आज बाहर मौसम कैसा  है, महसूस नहीं
बस देख लेती हूँ।

वैसे तो सब शांत है आज यहाँ
पर पास के खाली प्लोट में बुल्ल्दोज़र के चलने से
क्यूब मेरा अचानक से हिल उट्ठा है।

बाहर ऑफिस गार्डेन में कुछ लोग चाय पीते नज़र आए
दिमाग ने पेट को याद दिलाया की आज उसे भी चाय नसीब नहीं हुई है !
उठकर क्यूब से निकलने को मन नहीं हो रहा था
पर पेट की पुकार सुनकर पंट्री तक का सफ़र करना ही पड़ा।

वापिस क्यूब में आई तो लैपटॉप हेंग हो रखा था
जाने इसे कौनसे मौसम का बुखार उठा था ?
फिर नज़रें खिड़की से बाहर गईं
बादलों ने आसमान को घेरा हुआ था
टिप टिपाती बूंदों ने हरी घास पर निशाँ बना रखा था
पर मेरे क्यूब का मौसम नहीं बदला, सब वैसा ही था।

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