ऐ खुदा तुझसे पुछा मैंने
ऐ खुदा तुझसे आज फिर पुछा है मैंने
क्या मेरी इबादद तुझ तक पहुंची है?
अश्कों भरी निघाहों से जो पूजा है तुझे
क्या उन अश्कों की गर्माहट तुझ तक पहुंची है?
ज़िन्दगी की तन्हाई जो समां गई है मुझमे
उस तन्हाई में की गई मेरी फरियाद क्या तुझतक पहुंची है?
ऐ खुदा तुझसे पुछा मैंने
क्या मेरी इबादद तुझ तक पहुंची है?
मुस्कुरा कर तूने मेरे हर प्रश्न को इनकार कर दिया
मेरी हर इबादद और फ़रियाद को अस्वीकार कर दिया
मेरी तन्हाईयों के साथ यूँ अकेला न छोड़ मुझे
गलतियाँ तो हुई हैं मुझसे ज़िन्दगी में
पर उन्हें माफ़ करके आज़ाद कर दे मुझे
तेरे सहारे कई बार एक नयी शुरुआत की है मैंने
इस बार मेरी ऊँगली थाम कर किनारे तक पहुंचा दे मुझे
ऐ खुदा तुझसे आज फिर पुछा है मैंने
क्या मेरी झुकी नज़र और थमी साँसों की टीस
क्या मेरी हारी हुई खुशियों की चीस
ऐ खुदा क्या तुझ तक पहुंची है ?